Sunday, 26 January 2025

भारत: गणतंत्र की यात्रा और समृद्धि की दिशा


 
जब ' गणतंत्र ' नामक शब्द सुनाई पड़ता है, तो मुझे सूर्यवंशी राजा इच्छवाकु के पुत्र विशाल का स्मरण हो आता है, जिसके द्वारा बिहार में लिच्छवी गणराज्य की स्थापना की गई थी एवं जिसके नाम से वैशाली नाम प्रसिद्ध हुआ। वैशाली तत्समय वज्जि महाजनपद की राजधानी थी। लिच्छवी गणराज्य छठी शताब्दी ईसा पूर्व अस्तित्व में था, जिसे एशिया का प्रथम गणराज्य होने का दर्जा प्राप्त है। हिंदू स्मृति एवं पौराणिक मान्यताओं से इतर बुद्धकालीन मगध के सम्राट बिंबिसार द्वारा वैशाली के लिच्छवी राजा चेतक की पुत्री चेलना के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए जाने के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं। गणसंघ या गणराज्य प्राचीन भारत में गणतांत्रिक जनपद या राज्य थे, जिनकी राजनीतिक संरचना किसी विशेष कुल या गोत्र के रूप में स्थापित थी। इस प्रकार राजाधीन और गणधीन प्रकार की राज्य व्यवस्थाएं प्रचलन में रही। वैशाली का बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म से भी अटूट संबंध है। वैशाली ही वह स्थान है जहां अशोक स्तंभ आज भी बिना किसी शिलालेख के एकल सिंह द्वारा अपने धम्म स्तंभ होने का साक्ष्य प्रस्तुत करता है ।

मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म को अपनाया गया , जिसके क्रम में अशोक स्तंभों एवं शिलालेखों द्वारा आम जनता के मध्य नैतिकता को प्रसारित किया गया। इन नैतिकताओं का आधार बौद्ध धर्म को माना जा सकता है। बुद्ध द्वारा वर्षा काल की समाप्ति पर भिक्षुओं को चारों दिशाओं में जाकर बहुजन हिताय का आदेश मृगदाव में दिया गया था। संभवतः इस कारण राजा अशोक द्वारा सारनाथ स्तंभ के ऊपरी शिखर पर चारों दिशाओं में शेरों को निर्मित करवाया गया होगा। मुख्यतः यह धर्म चक्र प्रवर्तन की घटना का द्योतक माना जाता है। सिंह बुद्ध के शाक्य वंश का प्रतीक है, जो शक्ति, साहस एवं धर्म के मिले - जुले स्वरूप को दर्शाता है। सारनाथ स्तंभ से ही भारत का राजचिह्न लिया गया है। देश, काल, परिस्थिति के अनुसार धर्म एवं शासन करने के स्वरूप में निरंतर परिवर्तन होता गया। सम्राट अशोक के समय अखण्ड भारत का अस्तित्व दिखाई देता है, जिस पर शासन करने के तरीके का ही परिणाम है कि राज आज्ञाओं को अंकित करके नैतिक शासन को स्थापित किया गया, जिसमें पितृसत्तात्मक निरंकुशवाद के भी लक्षण दिखाई देते हैं।

गणतंत्र एवं लोकतंत्र की अवधारणा वैश्विक आधारों में संघर्ष, हिंसा एवं अधिकार की धुरी पर स्थापित हुई हैं। प्राचीन भारत के गणराज्य की मौलिक नींव ने कालांतर में आंतरिक एवं व्राह्य आक्रमणों के भार को झेला। इन्हीं आक्रमणों की परिणति ने देशों की सीमाओं का निर्माण किया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी जो भारत में व्यापारिक कंपनी थी जब वह शासन करने लगी तो कहीं न कहीं भारतीयों की चेतना में स्वशासन या स्वराज जैसे शब्द कौंधने लगे। संचार व्यवस्थाओं ने नेतृत्व को स्थापित किया और परिणामतः विभिन्न साधनों के माध्यम से भारतीयों को आज़ादी का साध्य प्राप्त हुआ। वो सारे लोग,जो ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए थे , स्वतंत्र होने पर पहली बार उन्हें आज़ादी के माने समझ आए। ये वो समय था जब भारतीयों को अपना निर्माण करना था। ऐसी व्यवस्था स्थापित करनी थी जिसमें जनता सर्वोपरि हो। हमारे संविधान निर्माताओं ने देश - विदेश की स्थापित व्यवस्थाओं का अध्ययन किया एवं भारतीय आमजन की राय के आधार पर भारतीय संस्कृति की मौलिकता के अनुसार संविधान के ढांचे का गठन किया। भारतीय संविधान 2 साल 11 माह 18 दिनों बाद दिनांक 26 नवंबर 1949 में तैयार हुआ जिसके 4 प्रावधान, अंतरिम संसद, नागरिकता,चुनाव, अस्थाई प्रावधान उसी दिन लागू किए गए। शेष संविधान भारत के गणतंत्र बनने के दिवस पर लागू किया गया।।

गणराज्य शब्द की उत्पत्ति फ्रांस में हुई। गणराज्य या गणतंत्र लैटिन भाषा के शब्द ' रेस पब्लिका '  के शाब्दिक अर्थ में देश को एक सार्वजनिक मामला माना गया है । गणराज्य के भीतर सत्ता के सांकेतिक एवं वास्तविक पद की निर्धारित व्यवस्था में राज्य का प्रमुख राजा नहीं होता एवं पद विरासत में प्राप्त नहीं होते अर्थात् सरकार जिसमें संविधान आधारित विधिवत रूप से निर्वाचित राज्य प्रमुख हो अर्थात् जिस देश में निर्धारित अवधि के लिए राष्ट्र प्रमुख चुना जाए ,उसे गणतंत्र कहा जाता है। भारतीय संदर्भ में शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत आधारित प्रतिनिधि लोकतंत्र है। भारतीय गणराज्य की अवधारणा ऐसे लोकतंत्र पर आधारित है जहां जनता की सरकार जनता के द्वारा जनता के लिए चुनी जाती है । यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक गणराज्य लोकतंत्र भी हो। चीन एवं ईरान जैसे देश गणराज्य है किंतु लोकतंत्र नहीं जबकि ब्रिटेन, कनाडा, स्वीडन, नॉर्वे जैसे देश लोकतंत्र होकर भी गणराज्य नहीं है । भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है । चूंकि कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 26 जनवरी 1930 के दिन ही रावी तट पर जवाहर लाल नेहरू द्वारा 'पूर्ण स्वराज' की घोषणा करते हुए झण्डा फहराया गया था। इसी कारण 26 जनवरी 1950 को गणतंत्र दिवस हेतु चुना गया। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के राष्ट्रपति बने और भारत एक गणतंत्र बना। ' जन मन गण ' के 52 सेकंड्स में 21 तोपों की सलामी के साथ भारतीय ध्वज अपने विभिन्न रंगों के साथ स्वतंत्रता की हवा में झूमने लगा। इसके साथ भारत बंगाल के गवर्नर से भारत के अंतिम गवर्नर जनरल तक की यात्रा पूर्ण करते हुए गणतंत्र स्वरूप में परिवर्तित हुआ एवं ब्रिटिश सत्ता से आजादी के बाद भारत में एक नए युग का उदय हुआ। 

भारत में पहली गणतंत्र परेड इरविन स्टेडियम (अब मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम) में हुई थी। 1955 में गणतंत्र दिवस परेड को राजपथ (वर्तमान कर्तव्य पथ) पर शिफ्ट किया गया। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बने थे। इस बार भी इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियान्तो गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हो रहे हैं। भारत एक शांतिप्रिय एवं संप्रभु राष्ट्र है। परमाणु शक्ति संपन्नता वाले शीर्ष देशों में भारत का स्थान है। जहां एक ओर भारत राष्ट्र की सुरक्षा को महत्व देता है वहीं दूसरी तरफ़ इसरो जैसे संस्थान ने अंतरिक्ष विज्ञान में भारत को अमिट रूप से स्थापित किया है। चंद्रयान-3 के बाद ISRO ने मिशन आदित्य L1 को सफलतापूर्वक 'Halo Orbit' में स्थापित किया गया है। भारत ने ब्लैक हॉल अध्ययन हेतु अपने पहले एक्स-रे Polarimeter Satellite एक्सपोसैट के प्रक्षेपण के साथ नए साल की शुरुआत की है। 'गगनयान मिशन' जैसे कार्यक्रमों की ओर भारत अग्रसर है।

हमें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं जहां समस्त शक्ति जनता में निहित है। संविधान की प्रस्तावना में ' हम भारत के लोग ' लोकतंत्र की मूल भावना का प्रतीक है। भारत के गणतंत्र बनने के साथ ही भारत की समृद्ध एवं विविध संस्कृतियों ने संविधान के रूप में न्याय, स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व की भावना को अपनाया। यह भारत की सांस्कृतिक विरासत का उत्सव भी है। ऐतिहासिक संदर्भों के साथ वर्तमान में मानव के लिए विभिन्न चुनौतियां सामने आ गई हैं। धरती के विभिन्न हिस्सों में सत्ताओं के संघर्ष से उपलब्ध संसाधनों पर संकट खड़ा हो रहा है जिस कारण भूमंडलीकरण के दौर में देशों की अर्थव्यवस्थाएं विभिन्न तरीकों से प्रभावित हो रही हैं। ऐसी अनवरत हिंसाओं ने मानवीय पीड़ा को बढ़ावा दिया है। मानवीय संघर्षों के साथ ही ग्लोबल वार्मिंग एवं पर्यावरण असंतुलन एक विकट समस्या है। विकास की अवधारणा को पर्यावरण की कीमत पर स्थापित नहीं किया जा सकता । इसके लिए आवश्यक है कि व्यक्तिगत  रूप से मौलिक जीवन शैली को अपनाया जाए एवं नैसर्गिक तरीकों से नवाचार को बढ़ावा दिया जाए ताकि सतत विकास की अवधारणा जनसामान्य में स्थापित हो सके।

हम आज 76वाँ गणतंत्र मना रहे है। कृषि, अनुसंधान, तकनीक, शिक्षा , स्वास्थ्य एवं रक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में भारत प्रगतिशील है। संप्रभुता, बंधुत्व , एकता एवं अखंडता भारत की पहचान हैं। यद्यपि तकनीकी में विकास होने से इण्डिया एवं भारत के मध्य अंतर घटा है अपितु आवश्यकता इस बात की है कि मानवीय मूल्यों के साथ तकनीकी विकास को तरजीह दी जाए ताकि भारत बुनियादी न्यूनतम आवश्यकताओ की पूर्ति के साथ लोकतांत्रिक गणराज्य की अवधारणा के साथ न्याय कर सके। यह हमारी विविधता का उत्सव है । यह हमारे स्वतंत्रता सैनानियों के मनोभावों का यथार्थ है। वैयक्तिक स्तर पर सभी नागरिकों एवं व्यक्तियों को यह प्रयास करना चाहिए कि वह लोकतंत्र में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे। चाहे वोट डालने का अधिकार हो या फिर पर्यावरण को उन्नत करने का कर्तव्य....देश के प्रति किसी भी भागीदारी में सकारात्मक योगदान दिए जाने से ही किसी देश का महत्व होता है। आशा है ए0 आई0 के युग में भारत अपने मौलिक मूल्यों के साथ अभिवृद्धि करते हुए सतत विकास की संकल्पना के अनुरूप विकास की संभावनाओं को तलाश करेगा ताकि आगामी पीढ़ियों के लिए सुविधाजन्य जीवन की संकल्पना को स्थापित किया जाना संभव हो सके।

० सीमा बंगवाल

1 comment:

  1. सुन्दर पोस्ट. हार्दिक शुभकामनायें

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