Wednesday 20 May 2020

2.राजा भोजपाल का भोपाल.....भीमबैठका ,साँची व संस्कृति की मिसाल।


          भोपाल....झीलों का शहर । मैंने राजा भोज के बारे में अपनी प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ा था कि भोजपत्र का वृक्ष विंध्याचल श्रेणी में पाया जाता था । हिंदी की किताब में लिखा था कि राजा भोज भोजपत्र पर लिखते थे सो राजा भोज आगे चलकर राजा भोजपाल कहे जाने लगे। एक धुँधली सी तस्वीर है आँखों में.... एक राजकुमार की जो भोजपत्र पर लिखते हुए एक पन्ने पर दर्शाया गया था। कालांतर में भोजपाल नाम ही अपभ्रंश रूप में भोपाल कहलाया। स्मृतियाँ मरती कहाँ हैं ? बस दिमाग एक कंप्यूटर की तरह मेमोरी में सुरक्षित करता जाता है। भोपाल की उस बड़ी झील में , जिसे भोजताल भी कहते हैं। राजा भोज प्रतिमा के रूप में अपने राजसी भंगिमा में खड़े थे मानो आने वाले के स्वागत को तत्पर हों। मैंने तो अपनी स्मृति में राजकुमार देखा था, यहाँ मैंने मूँछो से सुसज्जित पुरुष को देखा। इस प्रतिमा को देखकर विश्वास हो चला कि मैं अब भोपाल में हूँ.. भोपाल में हिन्दू व मुस्लिम संस्कृतियों के शासन के कारण एक मिली जुली सभ्यता के दर्शन हो जाते हैं। कहा जाता है कि 11 वी सदी में भोजपाल ने भोपाल को स्थापित किया फिर अफगान योद्धा दोस्त मोहम्मद खान ने इसे बसाया....देखिए न यहाँ भी संस्कृतियां बहुत मिलती थी।

           दर्शनीय स्थलों के बारे में लिखने से ज्यादा प्रासंगिक बातों को लिखना चाहूँगी। मैं काफी पहले हाजी अली की दरगाह पर गयी थी और एक बार जामा मस्जिद लखनऊ में जाते वक्त मुझे मालूम हुआ कि स्त्री होने के कारण मैं अंदर नही जा सकती। भोपाल में भी मैंने चाहा कि एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल को मैं देखूँ। इस बार आश्चर्य हुआ कि स्त्रियों के देखने के लिए ये खुली थी। बस सिर्फ नमाज़ के वक़्त और शाम 5 बजे बाद मदरसे के कारण स्त्रियों पर प्रतिबंध था।जो भी हो महिलाएँ कम से कम य यहाँ इसे खुलेपन को देख पा रही थीं, ये एक अच्छी बात थी। शौकत महल, सदर मंज़िल, मोती मस्ज़िद ....खंडहरों सी जान पड़ती थी। गौहर महल में अंदर जाने का मौका मिला। कहते हैं किसी रानी का पहला महल था, जिसके ऊपरी हिस्से से शहर को देखा जा सकता था। सबसे ऊपर के कमरे के दरवाज़ों पर शीशे की नक्काशी को निगाहें खोजती सी रही। नीचे के आँगन से ही उस कमरे को देख पा रही थी। निगाहों ने उस दृश्य को हल्के से छुवा।वो खंडहर बड़ा शांत था अब शायद प्रदर्शनी लगाने के काम मे लाया जाता है।


 भोपाल की सड़कें आईने के समान होती प्रतीत हुई किनारों पर मध्य प्रदेश की चित्रकला के नमूनों से जनजातीय समाज की प्रतिभा झलकती थी...खैर ये तो राजधानी की सड़कें थी । कुछ आगे चलते हैं। मैंने गौर किया कि सरकार के द्वारा वहाँ की कला व संस्कृति के पुनर्जीविकरण हेतु कई केंद्र स्थापित किये गए थे।जनजातीय समाज के रहन सहन, उनकी अलग अलग कृतियों को दर्शाता संग्रहालय। मेरे शब्दकोश में ऐसी व्यवस्था हेतु शब्द नहीं रहे। मध्य प्रदेश में गोड, भील, बैंगा,सहरिया, कोल जैसी लगभग 46 जनजातियाँ हैं, जिनकी जनसंख्या भी कुल जनसँख्या की लगभग 20 प्रतिशत होगी। मैं उन जनजातियों को उन कलाकृतियों द्वारा महसूस कर पा रही थी।


जनजातीय संग्रहालय के बाद भारत भवन देखा, जो राज्य के मुख्यमंत्री आवास करीब ही था। शायद मैं मिट्टी को आकृतियों में ढालते वो हाथ न देख पाती यदि मेरे मित्र अनिल जी मुझे देवीलाल पाटीदार जी से न मिलाते। कितने पढ़े लिखे लोग....भारत भवन के एक खंड में जगमग दुनिया से दूर तराश रहे थे, मेरे भारत की मिट्टी को....वो मिट्टी से बर्तन बना रहा था...मैं एकटक देखती थी..लगता था कोई अपने बच्चे को संस्कार दे रहा हो। कच्ची माटी को चाक के पहिये पर घुमाते घुमाते देखना सुखद था। न उसके हाथ थके और न उसकी निराशा बढ़ी। मिट्टी के बर्तन भी कई हाथों की करिश्माई का नतीजा होते हैं। कितनी कला होती है इन हाड़ मांस की उंगलियों में....फिर एक खण्ड में एक पेंटिंग उकेरने की मशीनों को भी देखा, जिसे कई लोग बनाते होंगे। कितनी सारी पेंटिंग्स ...सिर्फ चित्र ही तो थे मेरे लिए। जब देवीलाल जी ने कुछ पेंटिंग्स के अर्थ समझाए तो मेरा व्यवहारिक ज्ञान भी जवाब दे गया। कुछ लोग ज्ञान के सरोवर होते हैं और उनमें ये कला होती है कि वो कबीरदास की एक पंक्ति की तरह राई को पर्वत कर सकते हैं व पर्वत को राई। खैर पेंटिंग्स के क्षेत्र में पारंगत न होने पर भी मुझे उन पेंटिंग्स को समझने की चेष्टा हुई जिसे देवीलाल जी ने बताया ।


  आज सोंचती हूँ भोपाल शहर को यदि भोजपाल ने देखा होता तो शायद उसे निराशा न होती बल्कि कला व संस्कृति के इस उन्नयन को देखकर उसे गर्व की अनुभूति हो रही होती उस झील के अंदर भोजपाल की मूर्ति ऐसे ही गौरवपूर्ण अंदाज़ में सबको अपनी  पहचान बता रही है।


                ...........क्रमशः

5 comments:

  1. संस्कृति और सभ्यता की विरासत है भोपाल

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  2. सांस्कृतिक समन्वयन भारत की विशेषता है।

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  3. भोपाल शहर मेरा प्रिय शहर है । मैं यहाँ की श्यामल हिल्स पर स्थित रीजनल कॉलेज में पढ़ा हूँ । यह वही पहाड़ी है जिस पर भारत भवन है । भोपाल एक सुंदर शहर है । इस शहर में जो एक बार आता है उसे इस शहर से प्यार हो जाता है। आपने बहुत अच्छा वर्णन किया है भोपाल का ।

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  4. भोजपाल यानी भोपाल ...
    अच्छी जानकारी भोपाल शहर की ...

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