Saturday 23 May 2020

साहब, साहबियत और साहिबा- भाग 2

वैलेजली साहब का राज्य हड़प सिद्धान्त एकदम साहब की वर्चस्ववादी सोंच और कार्यप्रणाली से श्रेष्ठ उदाहरण रहा है। साहब के नाम की मर्यादा को वैलेजली ने धूमिल नहीं किया बल्कि भारतीय राजशाही को धूल चटा देने वाली इस साहबियत ने उसके नाम को भी रोशन किया। 1857 का विद्रोह न होता तो साहबियत का रूप और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता। हालाँकि कंपनी में  'साहिबा' कोहिनूर को अपने मुकुट में सजा चुकी थी। ये साहिबा वाक़ई साहब से ज़्यादा महत्वपूर्ण रही। अब साहिबा के वेश में साहिबा साहब ही तो थी। वरना देखिये अधिकृत देशों के नागरिकों को झुका उनकी गर्दन पर तलवार रखकर उपाधियाँ देना एक वर्चस्व की कहानी बयां करता है। भारतीय साहिबा के बारे में यदि देखा जाए तो रज़िया सुल्तान याद  आती है। लेकिन विश्व के विभिन्न परिवेशों में ब्रितानी साहिबा का स्थान ही सर्वोत्कृष्ट श्रेणी में रहा है ,क्योंकि उन्होनें साहबियत को स्वयं में धारित किया। रजिया साहिबा तो एक स्त्री ज़्यादा थी, साहबियत को समझने में थोड़ी चूक कर गयी और प्रेम कर बैठी, तुर्कानो से लड़ बैठी। उसकी हत्या कर दी गयी किन्तु साहबियत की साँसे ज़िंदा रही।





भारतीय मूल्यों में अनुसरण करना पहले सीखा जाता है। चूँकि हमारा इतिहास लंबे वक्त से विदेशी शासकों द्वारा शासित होता रहा, तो साहबियत का गुण कैसे पीछे रह जाता? साहब के गुण होने पर व्यक्ति का आत्मविश्वास दस गुना बढ़ जाता है। अब आप साहब बनने पर ही रिसर्च मत करने लगना , क्योंकि ये सिविल सर्विसेज की परीक्षा से भी कठिन है। पहले तो आप सफ़ल होंगे नहीं, लेकिन यदि आप सफ़ल हो गए ,तो आप कभी भी साहब के दर्ज़े से नीचे नहीं गिर सकते। साहबियत के लिए सिर्फ़ ऊंचाईयों पर पहुंचना ज़रूरी नहीं ... न इसके लिए कोई खास कद काठी का प्रावधान है और न ही किसी विशेष अंदाज़ का। लेकिन देखिये ये अंदाज़े बयाँ का कितना स्पष्ट उदाहरण है कि साहेब...साहिब...साहिबा। सारे शब्द 'साहब' के दूसरी और ही दिखते हैं। अब कुछ देर के लिए गुलज़ार 'साहब' को भूल जाइए। साहब की कल्पना करके मुझे राजशाही याद आ जाती है। 'राजा' और 'प्रजा'.....अब राजा भी ऋग्वैदिक काल की समानता से ऊपर उठकर अशोक के कलिंग विजय उपरांत निरंकुश पितृसत्तात्मक स्तर तक पहुंच ही गया था। रुहेला में इब्नबतूता की लिखावट सुल्तान की क्रूरता याद दिलाती है और फिर मेरा मन 1857 की क्रांति में ब्रिटिश अत्याचारों से भी रुदन करता है। कई संस्कृतियाँ मिट्टी में दफन हो गयी लेकिन ये साहबियत नहीं मरती। जाने कौन सा आब ए हयात पी कर साहबियत आयी है जो इंसान से बढ़कर खुद के वजूद पर इतराती है। अब साहबियत की सोहबत में रहे तब ही आब ए हयात की कुछ बूंदें मिलने की संभावना बढ़ सकती है।

#ख़्याल_ए_साहिबा

6 comments:

  1. अहा आपको पढ़ने में आनंद आने लगा है सीमा जी। बहुत शुभकामनाए , बेसाख्ता यूं ही बहती जाइये , कहती जाइये , लिखती जाइये। हम पढ़ रहे हैं आपको निरंतर

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  2. वाह ! आपकी कलम और आपका लिखने का अंदाज बहुत ही बढ़िया है
    लिखावट बहुत ही शानदार है

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  3. सबने बिल्कुल सही कहा ,शाही अंदाज में लिखती हैं आप ,पढ़ते हुए आनंद की अनुभूति होती है ,मेरी भी यही ख्वाहिश है आपकी रचनाओं को लगातार पढ़ती रहूँ ,साथ ही आपसे कुछ सीख सकूँ ।

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    1. आपके स्नेह को नमन💐

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