Saturday 30 May 2020

समय से आगे का समय


समय कभी नहीं रुकता ...न घड़ी में ...और न ही ज़िन्दगी में...। समय और ज़िन्दगी में एक फर्क होता है। समय पर उम्र की रेखाएं नहीं दिख पड़ती और ज़िन्दगी रेखाओं को जीकर दो ग़ज़ ज़मीन में समाती जाती है। समय की युवावस्था कभी ख़त्म नहीं होगी।वह मानव की उत्पत्ति से भी पूर्व बिग बैंग अवधारणा से समय से कितना जीवंत सा है। रामापिथेेकस , नियंडरथेलेंसिस जैसे कई मानवों के अवशेष हम इस समय की परिधि में खोल चुके है। अभी हम जैसे होमो सेपियंस के बाद जाने कौन सा जीव अवतरित हो। ये चिंता भी इंसान को कई पीढ़ियों के आगे ले जाएगी पर देखना ये समय जवां ही रहेगा। उस वक़्त चाहे ग्लोबल वार्मिंग से दुनिया धधक रही हो या सम्पूर्ण पृथ्वी ब्रह्मांड के उस डरावने से ब्लैक होल में समा जाने वाली हो। मेरे और आपके जैसे करोड़ो दिमाग़ भी समय के आगे अपनी आहुति दे देंगे पर समय न ही आपके इस बलिदान से द्रवित होगा और न ही उसके माथे पर झुर्रियां पड़ेंगी । सोचिए तो ज़रा....जब सारी पृथ्वी जर्जर हो सकती है....तारे , ग्रह काल के गर्भ में समा सकते है ...तो समय क्यों नहीं मरता ?



कई मानवीय सभ्यताएं हमने खंगाली हैं। हम सभी अवशेषों में इतिहास को जमा कर देखते रहने के आदी हैं। हम अदृश्य कथनों पर धर्म के नाम पर विश्वास करने की तरह अपने आस पास की हवा को महसूस करते हैं । हम ही वो लोग हैं जो समय को अपने जन्म और मृत्यु से महसूस करते हैं । किन्तु ये भी सत्य है कि हम बस महसूस करने में ही माहिर हैं । इंसान का समय उसके छोटे से जीवन काल में बदलता है । शुरुवाती जीवन जानवरों की तरह रेंगकर चलता है फिर जब खड़ा होकर चलने लगता है तो वो खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने की भूल कर बैठता है। किसी समय उसे दो जून की रोटियाँ भी नहीं मिलती, और कभी जब कुबेर महाराज की कृपा उस पर होने लगती है तो बस फिर तो दुनिया आपके कद से छोटी बन जाती है। ये साधारण सा हाड़ मांस का मनुष्य अपने जीवन के एक समय को खुशमय बनाने के लिए काफी लंबा समय अध्ययन काल के लिए सुरक्षित रखता है,लिखता -पड़ता है, अच्छी नोकरी या व्यवसाय करने के लिए या कहें अपने पैरों पर खड़े होने के लिए। जीवन को कर्मण्यशीलता से जीवंत रखने के लिए कितने ही लोगों ने सूक्त वाक्य लिखे परंतु मानव के जीवन का उद्देश्य मात्र कुछ वर्षों में सिमट कर कैसे रोचक रह सकता है।अपनी अपनी बौद्धिक क्षमताओं के आधार पर हर क्षेत्र का ज्ञान प्राप्त होने के बाद मानव अपनी ढलती काया के खत्म होने का इंतज़ार करने को विवश हो जाता है। मानव के लिए बस यहीं तलक तो उद्देश्य है समय का फिर तो आत्म केंद्रित साध्यों की पूर्ति ही शेष रह जाती हैं।

       बरसों रामायण, महाभारत , पुराणों जैसे ग्रंथों से मनुष्य होने की योनि के प्रमाण इंसानी दिमाग ने स्वयं सिद्ध कर लिए । हिंदुओं की गीता ने आत्मा को अजर अमर घोषित किया। मुस्लिमों ने क़ुरान में स्वर्ग जाने की मेराज़ को बताया। ईश्वरवाद व अनीश्वरवाद की क्लिष्ट धरोहरों ने इसे अपने अपने तरीकों से और भी ज़्यादा व्याख्यात्मक कर डाला। हाय री इंसानियत ..जो हर काल निरंतर धराशायी होती रही और समय मानव की इस मूर्खता पर मंद मंद मुस्काता रहा , क्योंकि आदि व अंत में वो हो जीवित रहने वाला है जो एक अकाट्य सत्य है। 

ईसा मसीह के सलीब चढ़ने से समय ने बढ़ना शुरु किया।मानव जोड़ और घटाव के फेर तक ही सीमित रह गया। समय ने कितनी बार ग्रीन विच के वक़्त को भी धोखा दिया है...जाने कितनी बार समय के चार -चार सेकण्ड समय में समायोजित किए गए। मानव ने समय की पहेली को देशों में टाइम जोन में विभाजित किया किन्तु मानव समय को धोखा नहीं दे पाया।

मेरा मन भी कभी कभी बालक की हठ कर लेता है। मेरा दिल भावनाओं से भरता रहता है व दिमाग़ उन भावनाओं को पढ़ता है और मेरी ये कार्यशील उंगलियां मेरे  दिमाग को पढ़कर उसे पठनीय बनाती जाती हैं...है न  कंप्यूटर की गति से भी तेज़ , तो फिर समय की गति से आगे बढ़ उसे थामने में ये कुशलता कहाँ खो जाती है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्रथम कोयसरवेट्स से होमोसेपियंस तक आ तो गए । कोई तो हो जो उस तेज़  समय के साथ दौड़ लगाने चले और उससे आगे निकल रोक ले उसे।

● सीमा बंगवाल

5 comments:

  1. आश्चर्य यह कि जो नहीं था जिस समय मे समय की गणना उसी के नाम से हो रही है ।
    समय पर यह सुंदर चिंतन है । एक मनुष्य के लिए समय वही है जिसका उतना जीवन काल है । शेष समय के बारे में वह केवल जान सकता है अध्ययन व आख्यान से । भविष्य अनिश्चित होता है शेष सब अनुमान है ।
    समय पर हमारे दिवंगत मित्र रविकुमार ने बहुत विस्तार से लिखा है अपने ब्लॉग 'समय के साये' में

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  2. समय को घड़ियों में भी मनुष्य ने बाँध दिया, बाँट दिया अन्यथा वह तो अनन्त है, निर्बाध है।
    समय के बारे में चिन्तन हो यह भी आवश्यक है।

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    1. मनुष्य की आँखे अनंत नहीं देख सकती। 💐

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